अधिक सोचने के नुक्सान | Disadvantages of Over-thinking

अधिक सोचने के नुक्सान:

इंसान को इंसान उसकी सोचने की क्षमता ने बनाया है वैसे तो जानवर भी सोचते हैं लेकिन उनमे चिंतन नहीं होता है।


Disadvantages of Over-thinking
Disadvantages of Over-thinking
 

उनकी ज्ञानेन्द्रियों में पीढ़ी दर पीढ़ी विकास नहीं होता है लेकिन मनुष्य में पीढ़ी दर पीढ़ी विकास चरम पर पहुँचता रहा है लेकिन यह प्रक्रिया धीरे धीरे संभव हुई।

यह प्रकृति का नियम है , अगर हम नियम को इसे तोड़ कर बहुत ज्यादा चिंतन करते हैं तो हमें उसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है हर इन्सान में सोचने के अलग – अलग स्तर होते हैं।

 

सोचने की विभिन्न श्रेणियाँ

देखिये आप किस श्रेणी में आते हैं !

चलिए जानते हैं आप किस स्तर पे पहुँचे हैं~

1. सामान्य चिंतन वाले लोग:

जब कोई व्यक्ति उतना ही सोचता है जितनी उसे जरुरत है तो वह सामान्य स्तर में है इस स्तर पर व्यक्ति अपने एक सीमित क्षेत्र के बारे में आकलन करता है।

जैसे एक राजनेता सिर्फ राजनीति के बारे में सोचेगा न की अभिनय के बारे में या फिर एक अभिनेता सिर्फ अभिनय के बारे में सोचेगा न की राजनीति के बारे में।

शोध में आया है की इस श्रेणी के लोग सबसे अधिक प्रसन्न रहते हैं इस श्रेणी के लोग अधिकतर नौकरी करना पसंद करते हैं।

 

2. धनात्मक चिंतन या उद्धमी चिंतन:

इस श्रेणी के लोग सामान्य श्रेणी से अधिक सोचते हैं तथा हर समय क्रियान्वित रहते हैं।

ये लोग कम से कम 2 क्षेत्र और अधिक से अधिक 5 क्षेत्रों में चिंतन करते हैं इस प्रकार के व्यक्तियों में लीडरशिप पाई जाती है। भारत में इस श्रेणी के अधिकतर लोग बिजनेस करते हैं।

 

3. चिन्तक श्रेणी या वुद्धिजीवी:

इस श्रेणी के लोग समाज के लिए वरदान होते हैं ये लोग लगभग हर क्षेत्र के बारे में चिंतन करते रहते हैं ये अधिक खुश नहीं रहते हैं लेकिन लोगों को खुश रहने का तरीका बताते रहते हैं।

इस स्तर के लोग रचनात्मक प्रवृति के होते हैं तथा ये लोग हर समस्या का निदान खोजते रहते हैं और किसी पर निर्भर रहना नहीं चाहते हैं।

ये अधिकतर इमानदार प्रवृत्ति के लोग होते हैं जो अपनी योग्यताओं का मुद्रीकरण करने में दिलचस्पी नहीं लेते हैं।

 

4. ऋणात्मक चिंतन:

इस स्तर पर वो लोग पहुचते हैं जो चिन्तक श्रेणी की बराबरी करने की जल्दवाजी करते हैं इनमे चिन्तक श्रेणी के सभी गुण पाए जाते हैं।

लेकिन समय से पहले निष्कर्ष पर पहुचने की कोशिश में ये अपने मस्तिष्क पर अधिक जोर देते हैं इसी वजह से इनमे ऋणात्मक धारा उत्पन्न हो जाती है।

ये लोग हर सफल व्यक्ति से अपनी तुलना करते हैं और अपनी असफलताओं का श्रेय अपने भाग्य को देते हैं इसिलिए ये अक्सर दुखी अवस्था में पाए जाते हैं।

5. चिंतन विकार ( Thinking Disorder ):

इस श्रेणी में वह व्यक्ति आता है जो ऋणात्मक चिंतन की हदें पार कर जाता है इस श्रेणी के लोग बहुत अधिक दुखी होते हैं अपने अन्दर ही अन्दर बुरी तरह विचलित हो जाते हैं लेकिन बाहर से कोई व्यक्ति इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकता कि वह अपने मन में कैसी कैसी व्यथाए झेल रहे हैं।

हमारी शोध के अनुसार एक सामान्य व्यक्ति ऐसे व्यक्तियों के बारे में सोच ही नहीं सकता ऐसे व्यक्तियों की पिछले 5 सालों में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है।
हर 20000 व्यक्तियों में एक ऐसा व्यक्ति पाया जाता है।

इनकी ख़ास बात ये है की इनका विचारने का नियंत्रण ख़त्म हो जाता है जो ये नहीं सोचना चाहते वही विचार बार बार इनके दिमाग में आता है।

शोध के अनुसार यह अवस्था अत्यधिक चिंतन के कारण आ जाती है इस अवस्था में मस्तिक में स्ट्रेस की सीमा पार होने लगती है और वह जीवन को इंटरटेन करना भूल जाता है।

ये लोग बार बार बिना वजह के अवसाद में जाने लगते हैं कई बार इस श्रेणी के लोग आत्महत्या भी कर लेते हैं।

अतः दोस्तों आप सभी के लिए मेरी यही राय है कि चिंतन जरुर कीजिये लेकिन जब आपके दिमाग में चिंतन की वजह से स्ट्रेस होने लगे वहीं पर विराम लीजिये क्योंकि हमारा नर्वस सिस्टम हर अनुचित क्रिया करने से पहले एक सिग्नल जरुर देता है उसे पहचानना सीखिए।

हर बुरा कार्य करने से पहले हमारा शरीर विरोध जरुर करता है लेकिन हम उसे जबरदस्ती आदी बना देते हैं।

अतः खुद के स्वास्थ्य के बारे में सबसे पहले सोचे क्योंकि स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है कोई विकार होने पर हम असीमित धनी होने के बाद भी खुश नहीं रह पाते हैं।

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